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शुक्रवार, जून 02, 2023

शहर का प्रहरी

 ये बात है एक बार की 

शायद इतवार की। 

लोग छुट्टी के दिन सुस्ता रहे थे। 

कुछ घूमने गए और  

कुछ जा रहे थे। 

यूँ कहें तो कोई मुस्तैद न था जैसे,

बाहर से देखो तो शहर अकेला था जैसे।  

शायद यही देख बादलों ने उस दिन,

शहर को घेरा था। 

इस ओर से, या उस छोर से 

आया बादलों का रेला था। 

संग पुरवाई भी थी। 

उसकी आवाज़ में कुछ रुस्वाई सी थी। 

उसी के वेग ने छेड़ा जरा सा 

कस्बे की पवन चक्की को। 

दिखने में सदियों पुरानी सी 

जुड़ी थी उससे विकास की  ,कहानी सी।  

घर के बुजुर्ग की तरह ही है उसकी भी स्थिति 

काम कोई नहीं, मगर हर पते में लैंडमार्क वही। 

घर के बुजुर्गो की तरह 

ये भी जैसे डटी हो एक प्रहरी की भाँति। 

बस उसे देख कर ही, अपना रुख बदली आँधी।  

बादल भी आये, तो गिरोह बना कर। 

मगर देख कर तटस्थ इसे, 

रुख बदल चले किसी और शहर। 

           नवनीत गोस्वामी  31 मई 2023 


गुरुवार, जून 01, 2023

साथी सफर के

कारवां चलते गए  

एक एक कर, 

हम भी उसमें जुड़ते गए, 

भीड़ का हिस्सा बने 

तब से , खुद की हम कब सुने ?

साथी कितने भी हो साथ में,

मगर सब अकेले ही चले 

अपनी मंज़िलों की तलाश में ! 


राह में सबकी , इक दिन 

मोड़ वो आ जायेगा !

एक एक जैसे जुड़ा था,

बस उसी तरह, 

छोड़ कर वो जाएगा !

सफर जितना भी हो लिखा,

और जिसके संग हो लिखा 

आनंद रास्तों का लें गर 

सफर आसानी से कट जायेगा !


नवनीत / 31 मई 2023 



शादी का घर

आँगन सजा है 

क्या बंधा समां है 

इधर - उधर से लोग जमा है !


यही है असली काम रिश्तों का 

देखो महफ़िल में 

क्या रंग भरा है !


माई व्यस्त सत्कारों में 

उसके खोये दिन - रैन यहाँ, 

संगीत में उसको लिया बैठा 

पर उसके दिल को चैन कहाँ 


देख नाचती अपनी लाडो को 

टकटकी लगाए निहारे माँ !

छोटी छोटी ऐसे ही पलों को 

अपने दिल में वो कर रही जमां !!


ऐसी प्यारी रीतों को अब 

कहाँ ढूढ़ने जाए ?

ढोल और ढोली कहाँ मिलेंगे ?

ये हंसी ठिठोली कहाँ मिलेंगे ?

लुप्त सी होती इन रीतों को 

आओ कर दे फिर से जवां !!  

         नवनीत / 31 मई 2023 



 

बुधवार, मई 31, 2023

मेरी तलाश

 Painting : Thomas  Doughty 


उम्मीद, आस और तलाश 

अब शायद यही है मेरे पास 

अब तो इन दरख्तों को भी मालूम है 

मेरे आने का सबब !

हिल उठते है हवा के झोंको से 

"ना " के जवाब में ये सब !

नदिया ने भी अब ख़ामोशी सी ओढ़ी है,

एक ही जवाब कहने से, जैसे तौबा कर ली है !

लगता है कि जैसे थक से गए हैं ये सब,

और सोचते होंगे कि आखिर ऐसा चलेगा कब तक ?

बिना झपके पलक, राह टोहती, बाट जोहती मेरी आँखे 

दूर तलक मैदानों में , कभी पहाड़ो की ऊंचाई में 

और कभी ढूँढू वो खुशबु तेरी, उस पार से आती पुरवाई में  !

मगर मैं भी ये जानता हूँ कि 

उम्मीद पे कायम है ये दुनिया और 

इक दिन तुझे भी होगा मेरी चाहत का एहसास !

बस इसी उम्मीद से जारी है मेरी ये तलाश !

तू बसा है मेरे दिल में, 

और दिल की आवाज़ पहुंचेगी तुझ तक मेरी जान 

आज भले ही न सही , कल याद मेरी तुझे भी आएगी मेरी जान !


नवनीत गोस्वामी 
30 मई 2023  


गुरुवार, मई 25, 2023

कैद के पंछी !


ओ कैद के पंछी ! जानते हो, क्यूँ रखती हूँ इतना ध्यान तुम्हारा ?

क्यूंकि इसी क़ैद से पनपा है ये रिश्ता मेरा - तुम्हारा। 

एक बंदी ही दूजे  बंदी की व्यथा समझता है।,

ये मेरे मन की करुणा है और तू ! इसे मेरा प्यार समझता है  !!


तू क़ैद है इन लोहखण्ड के टुकड़ों में 

और मुझे क़ैद किया, ये शानो-शौकत और रेशमी कपड़ों नें !

सजी - संवरी, इस चमकीले लिबास में, 

अच्छी दिखती हूँ इस रुतबे के लिहाफ में !


तू और तेरी आज़ादी, केवल एक भीत ही दूर है,

मेरी आज़ादी और मुझमें तो, दीवारें भरपूर हैं !

कभी कुटुम्ब के रीत रिवाज,  

और कभी सामाजिक दस्तूर हैं !  


कहते है "घर की महारानी मुझको"

मगर दायित्वों में जकड़ा मुझको 

तेरा पिंजरा तो जग जाहिर 

मेरा तो दृष्टि से ओझल  !!  


ख्याल रख रही हूँ तुम्हारा,

ताकि ताकत भरते रहो अपने इन पंखों में 

और समेटते रहो नित उम्मीदें 

भले ही छुट - पुट अंशों में !!


धीरज धरना तुम मेरी तरह, उस दिन के इंतज़ार में,

वो दिन, बस तेरा होगा ! मन को भरना ऐतबार से !

भले ही "आज" मेरा नहीं, किन्तु  "कल" मेरा होगा,

विश्वाश है मुझको , मेरे आज से वो बेहतर होगा !!


आज भले ही उदासी हो , 

मगर कल देखोगे इस चेहरे पर,

मुस्कानों का बसेरा होगा !

                       नवनीत / 25.05.2023 


सोमवार, सितंबर 05, 2022

Life - how it is.


जीवन संघर्ष की गाथा है 

उसमें भी जो मुस्काता है 

सब कुछ वो पा जाता है 


मगर खुद को खोकर,

कुछ बन जाना !

खुद को खोकर 

कुछ पा जाना 

कितना जायज है ?

मगर ये भी सच है जनाब,

यहाँ ! मुफ़्त में कहाँ कुछ आता है ?

शायद ! वो कुछ पाने 

और कुछ बन जाने  

की कीमत 

खुद को खोकर ही तो चुकाता है !!


                . . . नवनीत 

                    5/9/2022 


 

शनिवार, फ़रवरी 13, 2021

प्रीत ना जाने कोई रीत !!


क्या कहुँ इसे ? 

इश्क़, मुहब्बत, प्यार या प्रीत ?

ना माने रस्मों के बंधन

प्रीत ना जाने कोई रीत। 


प्रीत ना जाने गाँव - शहर 

ना ही देखे सुबह - सहर 

प्रीत तेरी में बंध जाऊँ ,

रस्म -ओ -रिवाज़ सब छोड़ के आऊँ। 

गाऊँ तेरे नाम के गीत,

प्रीत ना जाने कोई रीत। 


प्यार में ऐसा क्या है राज़ ?

बढ़ता ही जाए उमरो -दराज़,

इक इक पल सौंपा जो तुझको 

कसम ख़ुदा की, 

बन गया वो खास। 

खो कर सब कुछ पाया मैंने ,

हार के मेरी, हुई है जीत। 

प्रीत न जाने कोई रीत !!


मिलने को ढूंढें लाख बहाने,

आख़िर दिल को कैसे संभालें ?

छुप-छुप के लांघ के आती,

जग की रस्मों की ऊंची भीत। 

प्रीत न जाने कोई रीत !!


प्यार ना देखे मज़हब यार का,

प्यार ना जाने जात और पात। 

ओढ़ चुनर तेरे नाम रंगा के 

हो गयी तेरी, मेरे मनमीत,

प्रीत ना जाने कोई रीत !!


            . . .  नवनीत गोस्वामी 

                   अहमदाबाद 

शनिवार, जनवरी 16, 2021

पतझर

यह कविता लिखी गयी थी 16 जनवरी 2021 (शनिवार), और उसी दिन साहित्य_संगम_संस्थान_गुजरात_इकाई के मंच पर प्रस्तुत की गयी। 20 जनवरी 2021 को इस रचना की वजह से मुझे "श्रेष्ठ रचनाकार" से सम्मानित किया गया। मुझे प्रसन्नता है इस बात की कि यह मेरी तीसरी कविता है जिसे इतना सम्मान और प्यार इस मंच से मिला।  धन्यवाद करती हूँ मंच का।  आप से इसी तरह प्रोत्साहन मिलता रहे।  धन्यवाद। https://www.facebook.com/groups/820559168735062/permalink/858678868256425/

 

वृक्ष, धरा सा रैन बसेरा,

इस से समझें, जीवन का फेरा। 

पंछी आते , कलरव करते,

नयी कोंपलों संग डाले डेरा। 


हंसी ख़ुशी में साथ निभाते,

चहुँ और से सुख है मनाते। 

लेकिन ऐसा  कब तक चलता है ?

जीवन क्षण भंगुर होता है। 


रंग बदलती या पीली पड़ती,

"जाती हूँ " यह पाती कहती। 

पत्ता इक -इक छूटा जाए ,

हमको नियति के नियम समझाए। 


माघ फाल्गुन का महीना आये,

रंग जीवन का बदला जाए। 

"जर्जर पत्ते" जैसे कि जीवन, 

पतझर जैसे मोक्ष का सीजन।  


जो आया है , करेगा कूच,

"शुभ करम करूँ" बस तू ये सोच। 

जानूं वेदना सही नहीं जाए 

ठूंठ सा वृक्ष, ये कह ना पाए। 


पत झर-झर कर लहराते जाए,

अपनी ही मौज में, संग पवन के,

जैसे पिया मिलन को जाए।

इठलाते - बलखाते संतोष से ,  

धरा की गोद में जा सो जाए। 


यह जीवन का अंत नहीं है ,

इक विरह को दूजा संतोष को पाए। 


विरहित वृक्ष की शाखों पर 

नए जीवन का होगा आगमन। 

नन्हीं कोंपलें आएँगी जब,

विरह वेदना तब होगी कम। 


एक बरस के सारे महीने 

विभिन्न रंगों और खुशिओं से भरे। 

अपने मूल को भूल ना जाएँ 

ये पतझर ही हम सब से कहे। 


जीवन में पाने का भाव, 

वो जाने जो खोता है। 

बिन पतझर, बसंत को समझे,

ऐसा कभी न होता है। 

  

. . . .  नवनीत गोस्वामी 

बुधवार, दिसंबर 09, 2020

सिख्या - मेरी रचनाएँ # 23

सिख्या 

आज की कविता पंजाबी में है , गुरमुखी लिखनी नहीं आती ,इसलिए देवनागरी में ही सही। भावाभिव्यक्ति की ही तो बात है।  कोई भी भाषा हो।  उम्मीद है आप तक जरूर पहुँचेगी। आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर इसे सुन भी सकते है - 

https://youtube.com/clip/UgkxTXTyHna-bYl-UIDbHPocLfZ4CIg7QzC9

कह गए वडे सयाने सब नूं ,

कुझ रख्या नहीं तक़रारा व्हिच !

अंत च जा मिल्दा दरया नूं  ,

रुक्या जो नीर पहाड़ां व्हिच !!


झुक्या दरख़्त, देन लयी झुक्दा,

मजबूरी नहीं उसदा झुकना !

पेड़ खजूर दा कबीरे नु दसदा ए ,

जो तणे रहे ,उस पाया कुझ ना !!


आ तन मिट्टी  ! आ धन मिट्टी !

जाके मिट्टी व्हिच मिल जाना !

ना रख वहम दिलां व्हिच बंदया,

कि तेरे बिन सब रुक जाना !! 


ना रुक्या , ना रुके किसे लई,

"समय" पानी दा रेला है !

जो नाल बहे, ओ लगे किनारे,

"भारी" "अहंकारी" अकेला है !


सोच - समझ के करीं ओ बंदया 

करम होवण या होवे व्यवहार। 

असां जो कीत्ता  ! असां  ही खटना,

आपणे कल दे असां खुद जिम्मेवार !

                          

                                     . . . नवनीत 


रविवार, दिसंबर 06, 2020

किसान - मेरी रचनाएँ#22


किसान 

बरसते पानी को देख उसका खुश होना जायज़ है

मगर ये कैसी बौछार थी, हुआ खुद ही उस में घायल है।


सुना था,बिन मौसम बरसात ठीक नहीं

आज हक़ीक़त में होते , देखा वही । 


तेरे दर पे आने की चाहत थी, करने को गुफ्तगू,

दीदार तेरा करने से पहले , इम्तिहान मेरा हुआ शुरू ।


तहजीब कहती है, आने वाले की  राह में बिछ जा,

तुमने तो मेरी राह में क्या क्या नहीं बिछा दिया ।


कहीं पत्थरों की दीवार, कहीं जमीं में खाईयां,

फिर भी धर्म जाति छोड़ देखी, रुख बदलती पुरवाईआं ।


मन की बात कहने का , हर कोई हकदार है,

आज मेरी बारी पर, क्यूं तू इतना बेकरार  है ?


मै तेरा दुश्मन नहीं, ना मेरी तुझसे कोई तकरार है,

मांगू केवल मेरा हक़, क्यूं बैठाए इतने पहरेदार है ? 


गर मसला है तो , सरकार मिलेगा उसका हल भी,

बस चाहिए थोड़ी चाहत और तुम्हारे कुछ पल भी ।


                                                        . . .  नवनीत

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शुक्रवार, नवंबर 20, 2020

स्मृति

 स्मृति 



हिंदी काव्य कोश
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
विषय::स्मृति

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दिनांक:19 /11/2020

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जटिल परिस्थिति, या हो सरल !

घर का इक कोना 

और फुरसत के दो पल !

तब दिल की तहों से उभरती यादें,

महकाती, मेरा स्मृतिपटल !


कुछ यादें मेरे घर से,

तेरे घर तक जाती हैं !

उसी मोहल्ले और गलियों से,

कुछ खुशियाँ ढूंढ़ के लाती हैं 

चहकाती मेरा स्मृतिपटल !


छोटी - छोटी बातें बचपन की,

या यौवन का कोई किस्सा,

दिल संग दिल मिलते थे जहाँ , 

शहर का वो खाली हिस्सा

जहाँ ना डाले कोई ख़लल 


असल जिंदगी से  बहुत हसीं,

मेरा ये स्मृति - उपवन है। 

वही रंग। वही महक।  

और वही बरसता सावन है।  

सावन की उन बूंदों में ,

यौवन कैसे गया मचल। 


खट्टे - मीठे पलों का,

ये मिश्रण कहलाती है। 

गर पाया हो जो मनभाया ,

स्मृतियाँ जुग - जुग गायी जाती हैं। 

मन माफिक जो ना पाया,

बन "अनुभव " पथ बतलाती है।

और मुझे बनाती और सबल। 


मेरे जीवन की स्मृतियाँ 

मुझसे एक सा मान पाती हैं। 

भले हंसाती  या भले रुलाती,

मेरे खालीपन की साथी हैं।

संग रहती मेरे पल - पल। 


माना मेरी स्मृतियों से जुदा,

वर्तमान परिवेश है। 

मगर मेरी स्मृतियों का दर्जा,

मेरी नज़र में विशेष है। 

स्मृतिपटल के पन्नों पे अभी,

नई स्मृतियाँ जुड़ना शेष है। 


नवनीत गोस्वामी 

अहमदाबाद (गुजरात)

 


शनिवार, नवंबर 14, 2020

बचपन बाल दिवस की शुभकामनायें (मेरी रचनाएँ #20)

बाल दिवस की शुभकामनायें 


कितना चंचल, कितना मासूम 

बचपन को नहीं मालूम। 

बचपन ना मांगे महंगे खिलौने 

देखे वो तो सपन सलोने। 

उन में ही वो रहता खोया 

कभी हँसा और कभी वो रोया। 

कुछ भी और गर नहीं वो पाए,

एक - दूजे के साथ में खुश है। 

भरा समंदर या बारिश का पानी,

कागज की नाव बहा कर खुश है। 

लहरों संग लेते हिचकोले 

पानी किनारे घर - घर खेलें।  

चंचल, चपल, निर्भय, मासूम,  

उस पर जिज्ञासा भी भरपूर। 

आज भी जिस मन रहे ये भाव 

वो नहीं गया बचपन से दूर। 

रंग रूप और जाट पात से 

इनका कोई नहीं सरोकार। 

बिना स्वार्थ के मिलते सबसे 

सबसे एक समान व्यव्हार। 


                       नवनीत गोस्वामी / 02 जून 2023 



गुरुवार, अक्तूबर 29, 2020

नज़र का असर (मेरी रचनाएँ #18)

 

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उम्मीद से भरी इक नज़र  

 देखती इधर - उधर ,

कर जरा अपनी तरफ 

मंज़र ही बदल जाएगा  !


आलम ये होगा, कि जो कहता था,

"अकेला हूँ " "ना कर पाऊंगा"

रूबरू जब होगा खुद से ,

सब खुद - ब - खुद कर जाएगा !!


खुद ही में खोकर, 

खुद ही को तू पा जाएगा  !

भरोसा जो, खुद-ही पे कर ले 

हर मुक़ाम तू पा जाएगा !


"आत्म" संग "विश्वास" मिलेगा 

मंज़िल की राहें, तू खुद बुनेगा !

इक ये जहाँ ही नहीं , तेरे सजदे में  

आसमाँ भी सर झुकायेगा !!


जब कोई साथ ना मिले

और कोई संग ना चले,

उम्मीद से लग के गले

दरिया भी तू तर जाएगा

                            . . . . . नवनीत 

मंगलवार, अक्तूबर 27, 2020

 

ज़रूरी नहीं हम लिखतें है जो दर्द,

वो हमीं से ताल्लुक रखते हैं।

दर्द - ए - गैर भी महसूस होता है जिसे,

ऐसा इक रहमदिल, हम भी रखते हैं।

जब निकले वो दर्द ,कलमा बन कर,

किसी और  के दिल का हाल बयां करते हैं। 

और जो यही लफ्ज़ दें दस्तक किसी के दिल पर,

उन्हें लगता है , कि इक हम ही है

जो उनको समझ सकते हैं ।

                          . . . नवनीत

रविवार, अक्तूबर 25, 2020

"दशहरा पर्व की शुभकामनायें"

  दशहरा

राम की शक्ति पूजा को,

आखिर तो रंग लाना ही था। 


बुरे पर अच्छे का परचम,

उसको तो फहराना ही था। 



स्वयं दशानन, भगवन से कह गया ,

वो तो बस अहंकार में बह गया। 


सन्देश ये विजया दशमी का,

एक मूल मंत्र बतलाता है। 


जो नेक भये , तिन पाये राम,

जो भये बुरे , हुए जल भस्म यहाँ 

                                   . . . नवनीत 

 

नवनीत - भाव तरंगिणी


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मंगलवार, अक्तूबर 13, 2020

पारले - जी और हमारा बजाज !

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🅝🅐🅥🅝🅔🅔🅣
सौहार्द ने जैसे फिर भरी परवाज़ !!
जगा चैतन्य और उठी आवाज़ ,
दो उद्योगों ने किया आगाज़ ,
एक Parle - G, दूजा हमारा बजाज !

दौर -ए -नफ़रत में जो आया आपका ऐलान 
लोग हैरान है , और चैनल परेशान !
जिन्हें अम्न -ए -मुल्क  की नहीं परवाह ,
नहीं बनेगें उनकी कमाई  का ज़रीआ !!

ना कोई विज्ञापन देंगे , 
ना प्रायोजक , ना वित्तीय दान !
बहुत हुआ राम भरोसे, 
अब ली अपने हाथ कमान !!

आजादी से लेकर अबतक, 
हर समय का देखा , उसने समाज 
नफरत को बढ़ावा दूँ कैसे ?
कैसे खड़ा रहूँ चुपचाप ?

"नवनीत" को आज समझ में आता है ,
ऐसे ही नहीं कहा जाता है !
बुलंद भारत की, बुलंद तस्वीर !
हमारा बजाज ! हमारा बजाज !!

                 . . . . . . नवनीत 





 

गुरुवार, अक्तूबर 01, 2020

#हथरस # कहो विदुर कब बोलोगे ?

हथरस ! उत्तरप्रदेश राज्य का एक जिला जो इन दिनों किसी अच्छे कारण के लिए चर्चा में नहीं हैं।  मनीषा, 19  वर्षीय बच्ची के साथ जो  अन्याय हुआ, उसने हमारे समाज के खोखले संस्कारों की पोल खोल दी।  लिहाज़ा ये पोल पहले कई बार खुल चुकी है , सरकारें और समाज उनपे कई बार शर्मिंदा हो चुका है (कहा तो ऐसा ही जाता है).  लेकिन महज़ कुछ दिनों के बाद सब सामान्य हो जाता है, सिवाय पीड़ित परिवार के।  हमारे नए भारत के "new normal" ट्रेन्ड में जानबूझ कर नया मुददा पैदा किया जाता है और इस कदर उछाला जाता है कि असल बात कहीं दब जाती है।  बचा पीड़ित परिवार ! वो न्याय की उम्मीद में न्यायपालिका के चक्कर काटता रह जाता है।  इसमें भी कई पीढ़ियां निकल जाती है ! कुछ पंक्तिआं जो मेरे मन मष्तिष्क में उत्तरी है , जिन्हे यहाँ आपसे शेयर करती हूँ।  

Rape cases in U..P. Uttar Pradesh, India. Hindi Kavita, Hind sharminda hai,


हैवानियत की हदें इस कदर कि 
हौंसले भी उसके हिम्मत हारे !
एक, दो , नहीं ! थे वो बहुत सारे,
बेआबरू हुई  एक और लाडो
चुप क्यूँ है सत्ता के गलियारे ??😓
                                . . . .... नवनीत 

डॉ कुमार विश्वास जी के हर शब्द से में सहमत हूँ - कहो विदुर कब बोलोगे !! देखिये क्या कहते है डॉ विश्वास :- 






#हथरस #देशकीबेटी #इन्साफ #जस्टिसफॉरमनीषा #बेकारसरकारकीजनतासहेमार  #मुआवजायाबचाव 

शनिवार, सितंबर 26, 2020

एस पी बालासुब्रह्मण्यम : साउथ से बॉलीवुड तक

एस पी बालासुब्रह्मण्यम : आवाज़ तेरी , मेरा पहला प्यार ! 


"साजन" बिन "सपनें " कैसे होंगे ? 

S. P. Balasubrahmanyam

ये "दिल दीवाना " जाने ना।  

छोड़ किनारा अपने "सागर" का 

तुमने दूर बनाया ठिकाना कहाँ ?

 

जब "आया मौसम दोस्ती का "

ख़त्म हुई "ये रात और दूरी "

"रोज़ा " कहे अपने "साजन " से 

"तुमसे मिलने की तमन्ना" हुई पूरी !!


 "तेरे रंग में रंगने वाली " नहीं मै कोई पहली 

गीत तुम्हारे गाकर ,दिलों ने दिल की बात कहली !


"मुझसे जुदा होकर , तुम्हे क्यूँ दूर जाना है " ?

पल भर की नहीं ये जुदाई ,मुश्किल लौट के आना है !!


नहीं थी खबर  "हम आपके है कौन" ?

मगर तेरे जाने से नम हैं आँखें , लब है मौन !


कहना मुझे इक बार है , कि "सच मेरे यार है "

आवाज़ तेरी, नवनीत का  "पहला - पहला प्यार है " !!


                                                          ..... नवनीत