नज़र का असर (मेरी रचनाएँ #18)
उम्मीद से भरी इक नज़र
कर जरा अपनी तरफ
मंज़र ही बदल जाएगा !
आलम ये होगा, कि जो कहता था,
"अकेला हूँ " "ना कर पाऊंगा"
रूबरू जब होगा खुद से ,
सब खुद - ब - खुद कर जाएगा !!
खुद ही में खोकर,
खुद ही को तू पा जाएगा !
भरोसा जो, खुद-ही पे कर ले
हर मुक़ाम तू पा जाएगा !
"आत्म" संग "विश्वास" मिलेगा
मंज़िल की राहें, तू खुद बुनेगा !
इक ये जहाँ ही नहीं , तेरे सजदे में
आसमाँ भी सर झुकायेगा !!
. . . . . नवनीत
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