क्या कहुँ इसे ?
इश्क़, मुहब्बत, प्यार या प्रीत ?
ना माने रस्मों के बंधन
प्रीत ना जाने कोई रीत।
प्रीत ना जाने गाँव - शहर
ना ही देखे सुबह - सहर
प्रीत तेरी में बंध जाऊँ ,
रस्म -ओ -रिवाज़ सब छोड़ के आऊँ।
गाऊँ तेरे नाम के गीत,
प्रीत ना जाने कोई रीत।
प्यार में ऐसा क्या है राज़ ?
बढ़ता ही जाए उमरो -दराज़,
इक इक पल सौंपा जो तुझको
कसम ख़ुदा की,
बन गया वो खास।
खो कर सब कुछ पाया मैंने ,
हार के मेरी, हुई है जीत।
प्रीत न जाने कोई रीत !!
मिलने को ढूंढें लाख बहाने,
आख़िर दिल को कैसे संभालें ?
छुप-छुप के लांघ के आती,
जग की रस्मों की ऊंची भीत।
प्रीत न जाने कोई रीत !!
प्यार ना देखे मज़हब यार का,
प्यार ना जाने जात और पात।
ओढ़ चुनर तेरे नाम रंगा के
हो गयी तेरी, मेरे मनमीत,
प्रीत ना जाने कोई रीत !!
. . . नवनीत गोस्वामी
अहमदाबाद
बहुत प्यारा गीत और सच भी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वीना जी
जवाब देंहटाएं