Pages

गुरुवार, मई 25, 2023

कैद के पंछी !


ओ कैद के पंछी ! जानते हो, क्यूँ रखती हूँ इतना ध्यान तुम्हारा ?

क्यूंकि इसी क़ैद से पनपा है ये रिश्ता मेरा - तुम्हारा। 

एक बंदी ही दूजे  बंदी की व्यथा समझता है।,

ये मेरे मन की करुणा है और तू ! इसे मेरा प्यार समझता है  !!


तू क़ैद है इन लोहखण्ड के टुकड़ों में 

और मुझे क़ैद किया, ये शानो-शौकत और रेशमी कपड़ों नें !

सजी - संवरी, इस चमकीले लिबास में, 

अच्छी दिखती हूँ इस रुतबे के लिहाफ में !


तू और तेरी आज़ादी, केवल एक भीत ही दूर है,

मेरी आज़ादी और मुझमें तो, दीवारें भरपूर हैं !

कभी कुटुम्ब के रीत रिवाज,  

और कभी सामाजिक दस्तूर हैं !  


कहते है "घर की महारानी मुझको"

मगर दायित्वों में जकड़ा मुझको 

तेरा पिंजरा तो जग जाहिर 

मेरा तो दृष्टि से ओझल  !!  


ख्याल रख रही हूँ तुम्हारा,

ताकि ताकत भरते रहो अपने इन पंखों में 

और समेटते रहो नित उम्मीदें 

भले ही छुट - पुट अंशों में !!


धीरज धरना तुम मेरी तरह, उस दिन के इंतज़ार में,

वो दिन, बस तेरा होगा ! मन को भरना ऐतबार से !

भले ही "आज" मेरा नहीं, किन्तु  "कल" मेरा होगा,

विश्वाश है मुझको , मेरे आज से वो बेहतर होगा !!


आज भले ही उदासी हो , 

मगर कल देखोगे इस चेहरे पर,

मुस्कानों का बसेरा होगा !

                       नवनीत / 25.05.2023 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें