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रविवार, दिसंबर 06, 2020

किसान - मेरी रचनाएँ#22


किसान 

बरसते पानी को देख उसका खुश होना जायज़ है

मगर ये कैसी बौछार थी, हुआ खुद ही उस में घायल है।


सुना था,बिन मौसम बरसात ठीक नहीं

आज हक़ीक़त में होते , देखा वही । 


तेरे दर पे आने की चाहत थी, करने को गुफ्तगू,

दीदार तेरा करने से पहले , इम्तिहान मेरा हुआ शुरू ।


तहजीब कहती है, आने वाले की  राह में बिछ जा,

तुमने तो मेरी राह में क्या क्या नहीं बिछा दिया ।


कहीं पत्थरों की दीवार, कहीं जमीं में खाईयां,

फिर भी धर्म जाति छोड़ देखी, रुख बदलती पुरवाईआं ।


मन की बात कहने का , हर कोई हकदार है,

आज मेरी बारी पर, क्यूं तू इतना बेकरार  है ?


मै तेरा दुश्मन नहीं, ना मेरी तुझसे कोई तकरार है,

मांगू केवल मेरा हक़, क्यूं बैठाए इतने पहरेदार है ? 


गर मसला है तो , सरकार मिलेगा उसका हल भी,

बस चाहिए थोड़ी चाहत और तुम्हारे कुछ पल भी ।


                                                        . . .  नवनीत

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