ज़रूरी नहीं हम लिखतें है जो दर्द,
वो हमीं से ताल्लुक रखते हैं।
दर्द - ए - गैर भी महसूस होता है जिसे,
ऐसा इक रहमदिल, हम भी रखते हैं।
जब निकले वो दर्द ,कलमा बन कर,
किसी और के दिल का हाल बयां करते हैं।
और जो यही लफ्ज़ दें दस्तक किसी के दिल पर,
उन्हें लगता है , कि इक हम ही है
जो उनको समझ सकते हैं ।
. . . नवनीत
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