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शनिवार, नवंबर 04, 2023

प्रशस्ति पत्र - 31 Days writing challenge

 

Navneet Goswamy


Story Mirror द्वारा प्रदत्त यह प्रशस्ति पत्र, उनके द्वारा आयोजित "31 days writing challenge" में भाग लेने के लिए प्रदान किया गया है। मैंने कोशिश की अधिक से अधिक prompts पर कविता लेखन कर सकूँ और मैंने की भी. . उसी के दौरान मुझे "Author of the week " के लिए नामित भी किया गया सरस्वती माँ का आशीर्वाद कि मेरी कविताओं को critics द्वारा खूब सराहा गया तथा मुझे " "Author of the week - Critics Choice" से सम्मानित किया गया।  धन्यवाद स्टोरी मिरर !
 

मंगलवार, सितंबर 19, 2023

गणपति बप्पा मोरया !

Ganpati Bappa Moraya


गणपति बप्पा मोरया !

प्रथम पूज्य देव ! विघ्नहर्ता ! सुखकर्ता ! के चरणों में वंदन !
और आप सब को गणेश चतुर्थी की मंगल कामनाएं !

जय देव ! जय देव !


 https://www.facebook.com/reel/1724099638110530


रविवार, सितंबर 17, 2023

क्या बनना चाहते हो ?

 

अगर कोई पूछे तुमसे 

कि क्या बनना  चाहते हो ?

मेरा सुझाव है 

किताब बन जाओ। 

बिना आवाज़ किये 

अपनी बात कह जाओ। 


                               . . . नवनीत गोस्वामी /16 सितम्बर 2023 

शनिवार, सितंबर 16, 2023

माँ

रचना : कवि श्री शैलेश लोढा

कल जब उठ कर काम पर जा रहा था, अचानक लगा कोई रोक लेगा मुझे, 

और कहेगा, खड़े खड़े दूध मत पी, हज़म नहीं होगा 

दो घड़ी साँस तो ले ले, 

इतनी ठण्ड, कोट भूल गया, इसे भी अपने पास ले ले 

मन में सोचा माँ रसोई से बोली होंगी , जिसके हाथ में सना आटा होगा,

पलट के देखा तो क्या मालूम था कि वहाँ सिर्फ सन्नाटा होगा। 

अरे अब हवाएँ ही तो बात करती है मुझसे, 

मुझे लगता है जब जाऊंगा किसी खास काम पर

तो कोई कहेगा दही शक्कर खा ले शगुन होता है,

कोई कहेगा गुड़ खा ले बेटा अच्छा शगुन होता है 

पर मन इसी बात के लिए तो रोता है कि सब कुछ है माँ , सब कुछ। 

जिस आज़ादी के लिए मैं तुमसे सारी उम्र लड़ता रहा 

वह सारी आजादी मेरे पास है 

फिर भी ना जाने क्यूं दिल की हर धड़कन उदास है 

कहता था न तुझसे, कि करूंगा वह ,जो मेरे जी में आएगा। 

आज मैं वही सब करता हूँ जो मेरे जी में आता है। 

बात ये नहीं हैं कि मुझे कोई रोकने वाला नहीं हैं,

बात इतनी सी है कि सुबह देर से उठु ना ,

तो कोई टोकने वाला नहीं हैं।।  

रात को अगर लेट लौटूं तो कौन रोकेगा भला 

दोस्तों के साथ घूमने पर उलहाने कौन देगा ?

मेरे वो तमाम झूठे बहाने कौन देगा ?

कौन कहेगा कि इस उम्र में क्यों परेशान करता है ?

हाय राम ! ये लड़का क्यूं नहीं सुधरता है ?

पैसे कहाँ खर्च हो जाते हैं तेरे ? क्यों नहीं बताता है ?

सारा सारा दिन मुझे सताता है, रात को देर से आता है 

खाना गरम करने को जागती रहूं,

खाना खिलाने को तेरे पीछे पीछे भागती रहूं, बहाती रहूं आँसू तेरे लिए 

कभी कुछ सोचा है मेरे लिए ?

खैर मेरा तो क्या होना है और क्या हुआ है 

तू खुश रहना , यही दुआ है 

और आज तमाम खुशियाँ ही खुशियाँ है, ग़म यह नहीं कि कोई खुशियाँ बाँटने वाला होता 

पर कोई तो होता , जो ग़लतियों पे डाँटने वाला होता  

तू होती ना, तो हाथ रखती सर पर, हल्के से बाम लगाती,

आवाज़े दे दे कर, सुबह उठाती।

दिवाली पर टीका लगाकर रुपये देती 

और कहती बड़ो के पाँव छूना, आशीर्वाद मिलेगा,

अगला कपड़ा, अगली दिवाली को सिलेगा। 

बहन को सताया , तो दो चांटे मारती,

बीमार पड़ता तो रो रोकर नज़रे उतारती। 

परीक्षा से आते ही खाना  खिलाती,

पापा की डांट का डर दिखाती।

इसे नौकरी मिल जाए , तरक़्क़ी करे 

दुआओं में हाथ उठाती, 

और तरक़्क़ी के लिए घर छोड़ देगा, 

यह सुनकर दरवाजे के पीछे चुपके चुपके आँसू बहाती। 

सब कुछ आज माँ  ! सब कुछ !

आज तरक्की की हर रेखा तेरे बेटे को छू कर जाती है 

पर माँ ! हमें तेरी बहुत याद आती है। 

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शैलेश लोढा जी की यह कविता माँ और बेटे के रिश्ते की बारीकियां बखूबी बयां करती है।  बच्चों की बेपरवाहियाँ और माँ का बच्चों की परवाह करना न छोड़ना, बहुत ही अच्छे से शब्दों में व्यक्त किया है। जो भी इस कविता को सुनता है, अंत तक आते आते उसकी आँखे नम हो ही जाती हैं।  मेरा तो क्या ही कहूं ! कविता की शुरुआत से अंत तक मेरे तो अविरल आंसू बहे जा रहे थे। नमन है सब माताओं को ! और नमन श्री शैलेश लोढा जी को !

गुरुवार, सितंबर 14, 2023

हिन्दी दिवस


हिन्दी दिवस की आप सब  शुभकामनाएं !

भारत वर्ष की राष्ट्र भाषा हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही अच्छे से समावेशित है। कोई व्यक्ति शिक्षित हो या अशिक्षित, हिंदी में बात करता है, समझता है।  और यही कारण है कि हिंदी हमारी मातृ भाषा है। और हम भारत के लोग ऐसा मानते भी है। इस भाषा की विशेषता है कि वाक्यों को लिखने , पढ़ने या बोलने के समय ही यह पता चल जाता कि जिस पात्र के बारे में लिखा जा रहा है, वह कौन है ? मतलब उस से रिश्ता क्या है।  हिंदी भाषा का व्याकरण बखूबी बता देता है। जैसे कि मेरी लिखी ये पंक्तियाँ पढ़िए - 

हिंदी में तो सर्वनाम सुन 

किसी को भी ये ज्ञात हो जाए। 

इतनी लम्बी लम्बी कहानी 

राजा भैया किन संग बतियाए। 

"तू" का किस्सा यारों संग है 

"तुम" याने कोई प्रेम प्रसंग है। 

"आप" लिखें किसी साहेब को 

या जब देखे सामने कोई दबंग हैं। 

हिंदी बहुत ही सरल भाषा है, उसके बारे में मैंने ये लिखा है -

जैसा लिखते हैं, वैसा उच्चारण,

अति सरल इसका, है स्वरुप। 

एक वर्ण की एक ध्वनि है,

और कोई वर्ण ना रहता मूक।। 

 अलंकार है वो गहने 

जिसने हिंदी को खूब सजाया। 

और अलंकृत हिंदी बोली जिसने 

हिंद  में उसने मान भी पाया ।। 

अंत में जाने माने शायर मोहम्मद इक़बाल जी की कविता की आखिरी पंक्तियाँ याद आ रही हैं -

हिंदी है हम ! हिंदी है हम !वतन है। 

हिंदोस्तां हमारा हमारा !

सारे जहाँ से अच्छा !  हिंदोस्तां हमारा।  


            नवनीत गोस्वामी / 14 सितम्बर 2023 

Youtube link : https://youtu.be/PllsA9HSdIo

Facebook : नवनीत गोस्वामी 

 #हिन्दी # # #राष्ट्र भाषा # #

शनिवार, सितंबर 09, 2023

आशावाद

जब चहुंओर लगे, पुरजोर अँधेरा। 

और निराशाओं ने तुझको घेरा।  

तब जो दिया तुम खुद जलाओगे,

वही मिटाएगा, जीवन से अँधेरा। 

और रोशन करेगा, जहाँ तेरा। 

             : नवनीत गोस्वामी 24 मार्च 2022  


गुरुवार, सितंबर 07, 2023

कृष्णा


कृष्णजन्माष्टमी के अवसर पर आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं। 

नन्द के आनंद भयो - जय कन्हैया लाल की !

इस अवसर पर श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित मेरा लिखा और गाया, ये गीत। youtube पर भी उपलब्ध है।  दिए गए लिंक पर क्लिक करें और आनंद लीजिये तथा बताइये कि आपको कैसा लगा। 

https://youtube.com/shorts/7kuhBeklv8Q    

https://youtube.com/shorts/32fxLqE5D5Q    




                                                                                                          द्वारा : नवनीत गोस्वामी 

मंगलवार, सितंबर 05, 2023

Teachers Day : डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में क्यूँ मनाया जाता है ?

शिक्षक दिवस की आप सब को शुभकामनाएं। 

5 सितम्बर का दिन, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।  

5 सितम्बर 1888 में,आँध्रप्रदेश के तिरुमनी गाँव (मद्रास) में जन्में डॉ राधाकृष्णन स्वतंत्र भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति एवं उसके पश्चात् राष्ट्रपति बने।  वे एक विद्वान् थे जो दर्शन शास्त्र पढ़ाते थे. बहुत उत्कृष्ट अध्यापक थे।  भारतीय दर्शन शास्त्र को वैश्विक मानचित्र पर रखने में उनकी अहम् भूमिका रही है।  उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के पीछे एक कहानी यह है कि 1962 में जब वे भारत के राष्ट्रपति थे कुछ students उनके पास आये उनके जन्म दिवस खास तरीक से मनाने के लिए और उनसे इस बात के लिए अनुमति चाही। डॉ राधाकृष्णन ने भव्य समारोह करने के लिए तो मना कर दिया परन्तु उन्हें सुझाव दिया कि यदि उनकी इतनी ही इच्छा है तो देश के प्रगति एवं उत्थान में शिक्षकों के योगदान को मान्यता देते हुए, इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मना सकते हैं।  यह बात उनके राष्ट्रपति कार्यकाल 1962 - 1967 के दौरान की है।  बस तभी से 5 सितम्बर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।  उनका, बतौर शिक्षक, योगदान अतुलनीय है।  उनके अनुसार "Teachers should be the best minds in the country" अर्थात शिक्षकों का दिमाग देश में सबसे अच्छा होना चाहिए।  क्यूंकि देश को बनाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। 


भारत रत्न से सम्मानित डॉ साहब को नोबेल पुरुस्कार के लिए कई बार नामाकिंत किया जा चुका है। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में उन्होंने 16 वर्षों तक सेवाएं प्रदान की। इन महान व्यक्तित्व के धनी शिक्षक के साथ साथ, देश के सभी शिक्षकों को मेरा प्रणाम।  जिनमें एक महान शिक्षक मेरी माँ भी हैं।  उन्हें कोटि कोटि मेरा वंदन। 

नवनीत / 5 सितम्बर 2023 



शनिवार, सितंबर 02, 2023

कोई दीवाना कहता है . . . .

 कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !

मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
कुमार विश्वाश जी की यह कविता, जो काफी ख्यातिप्राप्त है, यूँ तो महोब्बत में डूबे दो दिलों के हालत बताती है, मगर इस से यह भी सीखा जा सकता है कि इस दुनिया में सब हमारे ही हों, या वो लोग जिनसे हम दिन रात घिरे हैं, वो सब हमें पसंद करें, ऐसा जरूरी नहीं. उनमे से कोई हमें दीवाना कहता है , और कोई हमें पागल, बेवकूफ समझता है और कहते भी है।  कोई सामने कहता है , कोई पीछे से कहता है, मगर कहता तो जरूर है। 
इसलिए मन को समझाएं और रोज़ समझाएं कि भैया हम कोई निराले नहीं है इस जग में जिसके बारे में उल्टा सीधा कहा या समझा जाये। हम आम लोगो जैसे ही है। हम निराले हो सकते है स्वयं को विशेष बना सकते हैं, लोगों द्वारा किये गए व्यवहार पर प्रतिक्रिया न दे कर।  बस उसी तरीके से हम खास बन सकते हैं। 

हमें सब समझ सकें , जरूरी नहीं। 
कोई एक  ही समझे, बस इतना जरूरी है। 
जरूरी है भले इक हो, हाल-ए -दिल समझने को,
वो चाहे पास है तेरे, या फिर मीलों की दूरी है। 
                          . . .  Navneet Goswamy / 02nd Sep 2023

शनिवार, अगस्त 26, 2023

रामधारी सिंह दिनकर रश्मिरथी - कृष्ण की चेतावनी

 

वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।

मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,

पांडव का संदेशा लाये।
‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।

हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।

उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।

‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।

‘भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।

‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।

‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण।

‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?

‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।

‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।

‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।’

थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।
केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!

रामधारी सिंह दिनकर
रश्मिरथी - कृष्ण की चेतावनी