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शनिवार, सितंबर 02, 2023

कोई दीवाना कहता है . . . .

 कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !

मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
कुमार विश्वाश जी की यह कविता, जो काफी ख्यातिप्राप्त है, यूँ तो महोब्बत में डूबे दो दिलों के हालत बताती है, मगर इस से यह भी सीखा जा सकता है कि इस दुनिया में सब हमारे ही हों, या वो लोग जिनसे हम दिन रात घिरे हैं, वो सब हमें पसंद करें, ऐसा जरूरी नहीं. उनमे से कोई हमें दीवाना कहता है , और कोई हमें पागल, बेवकूफ समझता है और कहते भी है।  कोई सामने कहता है , कोई पीछे से कहता है, मगर कहता तो जरूर है। 
इसलिए मन को समझाएं और रोज़ समझाएं कि भैया हम कोई निराले नहीं है इस जग में जिसके बारे में उल्टा सीधा कहा या समझा जाये। हम आम लोगो जैसे ही है। हम निराले हो सकते है स्वयं को विशेष बना सकते हैं, लोगों द्वारा किये गए व्यवहार पर प्रतिक्रिया न दे कर।  बस उसी तरीके से हम खास बन सकते हैं। 

हमें सब समझ सकें , जरूरी नहीं। 
कोई एक  ही समझे, बस इतना जरूरी है। 
जरूरी है भले इक हो, हाल-ए -दिल समझने को,
वो चाहे पास है तेरे, या फिर मीलों की दूरी है। 
                          . . .  Navneet Goswamy / 02nd Sep 2023

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