नया साल बहुत बहुत मुबारक . . !
कविता लिखना - अभिव्यक्ति का दूसरा नाम है और इस ब्लॉग पर आपको पक्का देखने को मिलेगी। जो बात हमारे अंतर्मन को छू जाए, चाहे वो किसी भी तरीके से व्यक्त कि गयी हो, बस वही "perfect way of expression " है। हम नवरस के बारे मे तो जानते है : यथो हस्त तथो दृष्टि - जहाँ हाथ, वहां दृष्टि ! यथो दृष्टि तथो मनः - जहाँ दृष्टि ,वहां मन/मष्तिष्क ! यथो मनः तथो भाव - जहाँ मन/मष्तिष्क वहां भाव (inner feelings )! यथो भाव तथो रस - जहाँ भाव होगा , वहां ऱस ! इस ब्लॉग पर आप इन सब तरह के भावों से मुखातिब होंगे।
सोमवार, जनवरी 03, 2011
मंगलवार, दिसंबर 28, 2010
ठंडी की यादें #मेरी रचनाएँ
उत्तर भारत के कई प्रांतों में मौसम परिवर्तन के समाचार आने शुरू हो चुके हैं। सुबह और शाम की मीठी ठंड ने जाड़े के आने की दस्तक दे दी है। इसे हम गुलाबी ठण्ड भी कहते हैं। सुबह जब यही गुलाबी ठंड की ठंडी बयार तन को छू कर निकलती है तो पूरे मन मस्तिष्क को ताजगी से सराबोर कर जाती है। मेरा जन्म और पालन पोषण राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में एक छोटे से गाँव में हुआ है और वहां बिताये पल, मौसम -दर -मौसम , यादों का रूप लिए मन का एक कोना पकड़े आज भी डेरा जमाये हुए है। आज सुबह जल्दी उठ कर जैसे ही बाहर निकली तो वो ही जानी पहचानी गुलाबी ठंडक वाली हवा ने छुआ और यादें कुछ इस तरह से छलकती हुई पन्नों पर जगह बनाने लगी।
घुली है नरम नरम सी ठंडक ,
फिर सर्द हवा ने घेरा है !
छितराया है कोहरा,अपना हाथ पसारे ;
जैसे कह रहा हो;ये सारा जहाँ मेरा है !!
आसमान में छाया रहता,
छुटपुट बादलों का रेला !
जब भी सर उठा कर देखूं;
पता ना चले सांझ या सवेरा है !!
सूरज जी आँख मिचोली करते;
आते-जाते , जाते-आते !
थोड़ी तपिश दिखा दो हमको,
अजी डाला कहाँ पे डेरा है ?
जिधर घूमते सूरज भैया,
अपना आसन भी हिल जाता !
गर्मी में पूछा ना किसी ने ;
ये वक़्त का कैसा फेरा है !
सर्दी आती , याद दिलाती ;
गरम जलेबी, गजक पापड़ी !
अंगीठी, चूल्हे में सिकती रोटी ;
किन यादों ने मुझको घेरा है !
जाने दो बचपन में मुझको
बिना खिलौने खेले हम तो !
मुंह से धुआँ (भाप) निकाल,
कांच पे डाला करते थे,
नाम अपना लिखते और कहते
ये मेरा है ! ये मेरा है !
हर मौसम के अपने ही मिजाज;
कुछ खट्टे ! कुछ अच्छे !
उनसे जुड़ी ढ़ेर सी यादें ;
कहीं कोने में उनका बसेरा है !
.................. नवनीत गोस्वामी
कांच पे डाला करते थे,
नाम अपना लिखते और कहते
ये मेरा है ! ये मेरा है !
हर मौसम के अपने ही मिजाज;
कुछ खट्टे ! कुछ अच्छे !
उनसे जुड़ी ढ़ेर सी यादें ;
कहीं कोने में उनका बसेरा है !
.................. नवनीत गोस्वामी
बुधवार, नवंबर 03, 2010
शुभ दीपावली
आशाओं के दीप जगा के,
आओ बना दे इक ऐसी कड़ी ,
हर शब्द बने मिसरी के जैसा,
मुस्कान बने फूलों की झड़ी !!
काम क्रोध लोभ का अंधिआरा,
छोड़ के पल्ला भागे फिरे,
जब सुनेगा हर इक कोने से,
खनखनाती हँसी की लड़ी !!
हर मन मे मंगल हो !
दिन रात भी हो मंगलमय !
ना हो बैर भाव का अँधेरा,
सबका जीवन हो सुखमय !
दीप जगे हर कोने में !
हो जाए जहाँ यू रोशन !!
मन उजिआरा हो जाए तो !
घर भी रोशन, जग भी रोशन !!
!! शुभ दीपावली !!
नवनीत गोस्वामी
आओ बना दे इक ऐसी कड़ी ,
हर शब्द बने मिसरी के जैसा,
मुस्कान बने फूलों की झड़ी !!
काम क्रोध लोभ का अंधिआरा,
छोड़ के पल्ला भागे फिरे,
जब सुनेगा हर इक कोने से,
खनखनाती हँसी की लड़ी !!
हर मन मे मंगल हो !
दिन रात भी हो मंगलमय !
ना हो बैर भाव का अँधेरा,
सबका जीवन हो सुखमय !
दीप जगे हर कोने में !
हो जाए जहाँ यू रोशन !!
मन उजिआरा हो जाए तो !
घर भी रोशन, जग भी रोशन !!
!! शुभ दीपावली !!
नवनीत गोस्वामी
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