एक बेटी की तकलीफ़, जब माता पिता अपनी उम्र के साथ साथ, कमज़ोर होते शरीर की जाने कितनी तकलीफें झेलते हैं। कभी कभी उन्हें इन सब के टेल दबते हुए , मजबूर और असहाय देखती है तो बेटियों को तसल्ली इसी तरह से दे सकती हूँ -
दिल की बात
है ये वक़्त वक़्त की बात।
तुम्हारे भी कहाँ पहले से हालात ?
कि पलक झपकते ही पहुँच जाओ उनके पास
ढूढ़ती तो तुम भी होगी,
कहीं से कोई डॉक्टर फरिश्ता बन आए,
और हल करदे उनकी ये मुश्किलात।
किसे कहें , कौन समझेगा ?
कितना मुश्किल है, संभालना ये जज़्बात।
. . . नवनीत गोस्वामी
Dil ki baat . . . Hai ye vaqt vaqt ki baat. . . !
Tumhare bhi Kahan rahe pahle se halaat ?
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