Pages

शुक्रवार, अगस्त 25, 2023

तकलीफ़

एक बेटी की तकलीफ़, जब माता पिता अपनी उम्र के साथ साथ, कमज़ोर होते शरीर की जाने कितनी तकलीफें झेलते हैं।  कभी कभी उन्हें इन सब के टेल दबते हुए , मजबूर और असहाय देखती है तो बेटियों को तसल्ली इसी तरह से दे सकती हूँ -   

दिल की बात

है ये वक़्त वक़्त की बात।

तुम्हारे भी कहाँ पहले से हालात ?

कि पलक झपकते ही पहुँच जाओ उनके पास

ढूढ़ती तो तुम भी होगी,

कहीं से कोई डॉक्टर फरिश्ता बन आए,

और हल करदे उनकी ये मुश्किलात।

किसे कहें , कौन समझेगा ?

कितना मुश्किल है, संभालना ये जज़्बात।

                            . . . नवनीत गोस्वामी 

Dil ki baat . . . Hai ye vaqt vaqt ki baat. . . !

Tumhare bhi Kahan rahe pahle se halaat ?

Jo palak jhapakte pahunch jaaye, dene unka saath !
Doondhti to tum bhi hogi,
kahin se koi doctor, farishta aa jaye saamne tere.
aur hal karde unki ye mushkilaat !
Koi nahi samajh sakta,
kitna mushkil hai sambhalna ye jazbaat!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें