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रविवार, जून 04, 2023

हमारी प्रकृति

 नीला अम्बर , श्वेत  से बादल 

सुरमई सा जैसे, पहना हो काजल। 

बलखाती, गहरी, शांत सी नदिया
तीरों पर जीवन संचारित किया।

नील गगन का प्रतिबिम्ब  झलकता 

जैसे विशाल सा दर्पण रखा हो उल्टा। 

प्रकृति के आँचल में, रंग बिरंगी फुलवारी,

जैसे बड़े प्यार से कढी किसी ने फुलकारी। 


सीमा के प्रहरी 


दिन हो या रात हो 

हर पल सजग हो 

हम प्रहरी है सीमा के 

हम रक्षक धरती माँ के 

तान के आपने सीना,

खोल के अपनी आँखे

करदें छलनी उसको 

जो मेरी सीमा में झाँके। 

ऊँची पगड़ी, मूंछो को ताव,

भले हों तन पर लाखों घाव। 

                      नवनीत / 4 जून 2023 



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