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शुक्रवार, अक्तूबर 02, 2020

सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो ,अब गोविन्द ना आयेंगे !

नया समाज : नयी सीख #ब्लॉग पोस्ट # 02  

महिलाओं और बच्चों के साथ आये दिन बढ़ते दुर्व्यवहार तथा अपराधों को देखते हुए श्री पुष्यमित्र उपाध्याय की एक कविता आज के सामाजिक ढर्रे पर सटीक बैठती है और साथ ही साथ हमें आइना दिखाती कि हमसे बना ये समाज किस दिशा में अग्रसर है ! #womansafety #childsafety #today'sindia 

छोडो मेहंदी खडग संभालो  

खुद ही अपना चीर बचा लो 

द्यूत बिछाए बैठे शकुनि ,

मस्तक सब बिक जाएंगे 

सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो , अब गोविन्द ना आयेंगे !

Media ! जो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है , उसके सन्दर्भ में कविता में कहा गया है -

कब तक आस लगाओगी तुम,

बिक़े हुए अख़बारों से 

कैसी रक्षा माँग रही हो 

दुःशासन दरबारों से।  

ये पंक्तिआं आज  देश में मीडिया की हालत को बखूबी बयां करतीं हैं। रही बात अपेक्षाओं की , जो सर्कार से है ! समाज से है ! और सिस्टम से हैं ! उस पर टिपण्णी करते हुए कवी श्री पुष्यमित्र लिखते है कि -

कल तक केवल अँधा राजा ,

अब गूंगा बहरा भी है 

होठ सी दिए है जनता के,

कानों पर पहरा भी है।  

तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे ,

किसको क्या समझायेंगे ?

सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो , अब गोविन्द ना आयेंगे !

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 देश की जनता कल्पना में खोयी है।  सबके पास वक्त की कमीं है , रही सही कसर फेसबुक और whatsapp जैसे social मीडिया ने पूरी कर दी है।  सब वर्चुअल है।  वक़्त की कमीं है।  भगवान् के चमत्कारों का इंतज़ार करती हुई जनता। हालात कुछ ऐसे हैं :-

सोचते है घोर कलयुग
कृष्ण सुदर्शन चलाएगा।
मगर अफ़सोस... !
मगर अफ़सोस...!
यहाँ  दुर्योधनों की भीड़ है ,
कृष्ण कहाँ कहाँ जा पायेगा ?

और इन हालातों के चलते मैं सिर्फ इतना कहूँगी कि -

कहती हूँ तुमसे ओ  नन्ही कली
पंखुड़ी सी  भले तुम कोमल बनना
पर प्रहार में ऐसा  बल रखना
नज़र डाले जो कोई दानव तुम पर
खुद बन जाओ चक्र सुदर्शना  !!

             . . . . . . नवनीत गोस्वामी


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