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गुरुवार, जून 24, 2010

"Janta Ke Sevak . . . "

this is about नौकरशाही & नेतागिरी in INDIA . most of the persons are corrupted in "SYSTEM": -

सब कुछ तो है पता ;
फिर भी अनजान है क्यू !
जिस बात पे ना होना हो :
उसी पे सब हैरान है क्यू !!

जानते नहीं सच्चा है या
सच्चा होने का नाटक
हर कोई झूठ सा
सच सामने लाता है क्यू ?

जिसे देखती है दुनिया तमाम ;
उसी को माना जाता है
जानते है ये इक पर्दा है
लेकिन सच वही जो दिखाया जाता है !!

दावा तो सब करते है
"छुपता नहीं कुछ भी छिपाने से ";
पर कोई बताये
कब जगा है रक्षक , किसी के जगाने से ?

वतन पे मिटने वालों का
गुजर चुका जमाना
अब तो आम आदमी का पसीना
और "जन सेवक " का पैमाना !!

आज तक समझे नहीं ;
"सरकार" का मतलब ;
"जो राज करे ,कानून बनाये
बगिया में दो वृक्ष लगाये ;
ना पनपे तो कोई बात नहीं ,
गर फल दे डाले
तो टैक्स लगाये !!

जन सेवक के और भी ठाठ ;
"सेवा - इस एक शब्द में डूबे रहे ,
खुद को जन का दोस्त बताये ;
जनता का वो पैसा खाए ;

अरे ! घर के खर्च की पड़ी किसे है ?
वो तो बड़ी सी कार में जाए !

नेता का है एक ही सपना ;
राजधानी में घर हो अपना ;

किसने मुड कर देखा पीछे !
इस जन ने ही उनके आँगन सींचे !!

उसी से भरते उनके भंडार
जिस से होते उनके व्यापार ;

चाहे IPL , या शेयर बाज़ार ;
Page 3 के ये किरदार !


1 टिप्पणी:

  1. वाह वाह वा...आपकी काव्य प्रतिभा ने बहुत प्रभावित किया है , आपने समसामयिक विषयों और समस्याओं पर अपनी व्यापक पकड़ को बहुत ख़ूबसूरती से अपनी रचना में प्रस्तुत किया है...संजीदा विषय पर हास्य के तड़के लगाने की आपकी कला अद्भुत है...विलक्षण है...वाह...आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है के भविष्य में भी आपकी ऐसी ही अनमोल रचनाएँ पढने को मिलती रहेंगी....

    नीरज

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