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रविवार, जून 20, 2010

अमृतधारा

इंसान कौन सी परिस्थितियों में क्या बन जाये पता नहीं, जैसे हम है ; हमें ज़रा सा दर्द हुआ कि हम कवित्री बन गए (मजाक है ) दो दिनों से एक छोटे से छाले ने हमें परेशान कर रखा है, उसी का दर्द पन्नो पे उतारा है:-

सुनो सुनो इक बात सुनाये ;
सुनिए बात हमारी !
अधरों पे निकला इक छाला;
ये है व्यथा हमारी !

पहले था यह नन्हा सा;
दिया नहीं कुछ उसपे ध्यान !
पान के गल्ले पे जा खाया;
छाले वाला पान !
पर एक रात में नन्हे ने
कर दिया हमें परेशान!

पहले दिन था कण के जितना ;
अब हुआ चाँद का duplicate !
हम सोचें ये हुआ  हमें क्यूँ ?
साफ़ हैं रखतें अपना पेट !

सुबह हुई चले हम दफ्तर ;
जहाँ काम करतें नहीं अक्सर !
जताएं ऐसे ,जैसे बहुत है काम ;
और इसके कारण आज आराम !

घंटी बजी फोन कि हाय ;
मुहं से कुछ ना बोला जाये !
फोन लिया भाई अंकुर बोले;
काहे N P कम कम बोले !

हाल है क्या उनको भी कह डाला ;
मुख गुहा में हमारी ;
इक दर्द है पाला ;
अधरों पे निकला इक छाला !

सुनकर बोले अंकुर भाई ;
तुम्हे बताऊ एक दवाई !
जिसने हरा दर्द हमारा ;
दो बूँद पियो तुम "अमृतधारा"

औषधी है ये राम बाण ;
जिसने किया सबका कल्याण !


* अंकुर भाई हमारे भाईसाहब है.
* हमारे घर में हमें N . P . यानी Navneet Puttar के नाम से पुकारा जाता है .

2 टिप्‍पणियां:

  1. मुख के छाले पर जीवन में पहला पद्य पढ़ा है ! कष्ट का भी आनंद लिया जा सकता है , पढ़ कर पता चला ...आप हमेशा स्वस्थ्य रहे मस्त रहे और लिखती रहें !! मेरी शुभकामनाये��

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